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भारत सरकार 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध

Government of India is committed to completely eliminate Naxalism by 31 March 2026

Government of India is committed to completely eliminate Naxalism by 31 March 2026

देश के इतिहास के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियानों में से एक के तहत, सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर वामपंथी उग्रवाद के विरुद्ध लड़ाई में एक बड़ी सफलता हासिल की। 21 अप्रैल से 11 मई, 2025 के दौरान, नक्सली समूहों के गढ़ माने जाने वाले कर्रेगुट्टालु पहाड़ी (केजीएच) क्षेत्र में एक व्यापक अभियान चलाया गया। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष कार्य बल (एसटीएफ), जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और राज्य पुलिस बलों के समन्वित प्रयासों के परिणामस्वरूप 16 महिलाओं सहित 31 माओवादियों को मार गिराया गया। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में सुरक्षा बलों ने 21 मई को 27 खूंखार माओवादियों को मार गिराया, जिनमें नंबाला केशव राव, उर्फ बासवराजू भी शामिल था, जो सीपीआई-माओवादी का महासचिव, शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ था। वहीं, ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।

वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ भारत की बहुआयामी रणनीति ने उग्रवाद को क्षेत्रीय और परिचालन दोनों के लिहाज से काफी कमजोर कर दिया है। सरकार के सुरक्षा, विकास और अधिकार-आधारित सशक्तिकरण के मिश्रण पर जोर से पहले से प्रभावित क्षेत्रों में परिदृश्य बदल गया है। मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक प्रतिबद्धता और लोगों की भागीदारी के साथ, एलडब्ल्यूई मुक्त भारत का सपना पहले से कहीं अधिक करीब दिख रहा है।

नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा की सबसे गंभीर चुनौती

दरअसल, वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई), जिसे अक्सर नक्सलवाद के रूप में जाना जाता है, देश की आंतरिक सुरक्षा की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं में निहित और माओवादी विचारधारा से प्रेरित, वामपंथी उग्रवाद ने ऐतिहासिक रूप से देश के कुछ सबसे सुदूरवर्ती, अविकसित और जनजातीय-बहुल क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इस आंदोलन का उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह और विशेष रूप से सुरक्षा बलों, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और लोकतांत्रिक संस्थानों को निशाना बनाते हुए समानांतर शासन संरचनाओं के जरिए भारतीय राज्य को कमजोर करना है।

पश्चिम बंगाल में 1967 के नक्सलबाड़ी से पैदा हुआ आंदोलन

पश्चिम बंगाल में 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से उत्पन्न, यह आंदोलन मुख्य रूप से “लाल गलियारे” में फैल गया और इसने छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों तथा आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के कुछ हिस्सों को प्रभावित किया। माओवादी विद्रोही हाशिए पर पड़े लोगों, विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन उनके तरीकों में सशस्त्र हिंसा, जबरन वसूली, बुनियादी ढांचे को नष्ट करना और बच्चों व आम नागरिकों की भर्ती शामिल है।

नक्सलवाद सुदूरवर्ती इलाकों एवं जनजातीय गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा

हाल के वर्षों में, भारत की बहुआयामी वामपंथी उग्रवाद विरोधी रणनीति – सुरक्षा प्रवर्तन, समावेशी विकास और सामुदायिक सहभागिता के सम्मिलित रूप – ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। इस आंदोलन को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया गया है, हिंसा में भारी कमी आई है और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित कई जिलों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में फिर से शामिल किया जा रहा है। भारत सरकार 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि नक्सलवाद को सुदूरवर्ती इलाकों एवं जनजातीय गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता है और यह शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कनेक्टिविटी, बैंकिंग और डाक सेवाओं को इन गांवों तक पहुंचने से रोकता है।

कुल नक्सलवाद प्रभावित जिलों में से, सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 हुई

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अप्रैल 2018 में 126 से घटकर 90, जुलाई 2021 में 70 और अप्रैल-2024 में 38 रह गई। कुल नक्सलवाद प्रभावित जिलों में से, सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले (बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा), झारखंड का एक जिला (पश्चिमी सिंहभूम) और महाराष्ट्र का एक जिला (गढ़चिरौली) शामिल है। इसी तरह, कुल 38 प्रभावित जिलों में से, चिंता वाले जिलों की संख्या, जहां गंभीर रूप से प्रभावित जिलों से परे अतिरिक्त संसाधनों को पुरजोर तरीके से प्रदान करने की आवश्यकता है, 9 से घटकर 6 हो गई है। ये 6 जिले हैं, आंध्र प्रदेश (अल्लूरी सीताराम राजू), मध्य प्रदेश (बालाघाट), ओडिशा (कालाहांडी, कंधमाल और मलकानगिरी) और तेलंगाना (भद्राद्री-कोठागुडेम)। नक्सलवाद के विरुद्ध निरंतर कार्रवाई के कारण, अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों की संख्या भी 17 से घटकर 6 रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ (दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी), झारखंड (लातेहार), ओडिशा (नुआपाड़ा) और तेलंगाना (मुलुगु) के जिले शामिल हैं। पिछले 10 वर्षों के दौरान, 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता त्याग दिया है और इसके परिणामस्वरूप, नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 20 से भी कम रह गई है।

भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में कमी को पूरा करने के लिए एक विशेष योजना, विशेष केन्द्रीय सहायता (एससीए) के तहत सबसे अधिक प्रभावित जिलों और चिंता वाले जिलों को क्रमशः 30 करोड़ रुपये और 10 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा, आवश्यकता के अनुरूप इन जिलों के लिए विशेष परियोजनाएं भी प्रदान की जाती हैं।

वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी हिंसा की घटनाएं, जो 2010 में अपने उच्चतम स्तर 1936 पर पहुंच गई थीं, 2024 में घटकर 374 रह गई हैं, यानी 81 प्रतिशत की कमी आई है। इस अवधि के दौरान, कुल मौतों की संख्या (नागरिकों + सुरक्षा बलों) भी 85 प्रतिशत घट गई और यह 2010 में 1005 से घटकर 2024 में 150 रह गई है।

सफलता की कहानियां

गौरतलब हो, 2014 में 330 पुलिस थाने ऐसे थे जहां नक्सली घटनाएं हुईं, लेकिन अब ये संख्या घटकर 104 रह गई है। पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र 18,000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा में फैला था, जो अब सिर्फ 4,200 वर्ग किलोमीटर में फैला है। 2004 से 2014 के बीच नक्सल हिंसा की कुल 16,463 घटनाएं हुईं। हालांकि 2014 से 2024 के दौरान हिंसक घटनाओं की संख्या 53 प्रतिशत घटकर 7,744 रह गई है। इसी तरह सुरक्षा बलों के हताहतों की संख्या भी 73 प्रतिशत घटकर 1,851 से 509 रह गई है। 2014 तक कुल 66 फोर्टिफाइड थाने थे, लेकिन पिछले 10 सालों में इनकी संख्या बढ़कर 612 हो गई है। पिछले 5 सालों में कुल 302 नए सुरक्षा शिविर और 68 नाइट लैंडिंग हेलीपैड स्थापित किए गए हैं।

नक्सलियों पर आर्थिक रूप से शिकंजा कसने और उनकी आर्थिक कमर तोड़ने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल किया गया, जिससे नक्सलियों से कई करोड़ रुपये जब्त किए गए। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामले दर्ज किए गए और नक्सलियों को फंड देने वालों को सलाखों के पीछे भेजा गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास लाने के लिए इन क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में 300% की वृद्धि की गई।
दिसंबर 2023 में, एक साल के भीतर 380 नक्सली मारे गए, 1,194 गिरफ्तार किए गए और 1,045 ने आत्मसमर्पण कर दिया।
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